फॉसिल क्या हैं?

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फॉसिल क्या हैं?

लाखों करोड़ों वर्ष पहले अनेकों पेड़-पौधे और जीव-जंतु उथल-पुथल के कारण धरती के गर्भ में दब गए. धरती की खुदाई करने पर उन्हीं पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं के बहुत से तने, पत्तियां, हड्डियां और खोल अनेकों चट्टानों से प्राप्त होते हैं. इन्हीं जीव-अवशेषों को फॉसिल (Fossils) कहा जाता है.

जीव-अवशेषों से सम्बन्धित विज्ञान को पेलेआण्टोलाजी (Palaeontology) कहते हैं. इस विज्ञान के अनुसार फॉसिल तीन प्रकार के होते हैं. पहले प्रकार के अवशेष वे हैं, जिनमें किसी जीवित पदार्थ का पूरा शरीर बिना खराब हुए सुरक्षित दशा में मिलता है. दूसरे प्रकार के अवशेष वे हैं, जिनमें जीवित प्राणियों के शरीर के सरल हिस्से, जैसे-हड्डियां, खोल, पेड़ों के तने आदि मिलते हैं. तीसरे प्रकार के अवशेष वे निशान हैं, जो उस समय के प्राणियों के कीचड़ या मिट्टी पर चलने से बन गए थे और वे उसी दशा में जमीन में दब गए.

फॉसिलों के अध्ययन से जीवन के विकास और प्राचीनकाल के बहुत से प्राणियों के विषय में जानकारी प्राप्त हुई है. अवशेषों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि धरती पर जीवन की शुरुआत आज से लगभग 350 करोड़ वर्ष पहले हुई थी. जीव-अवशेषों से यह भी पता चला है कि जीवन के क्रमिक विकास में क्या-क्या परिवर्तन हुए हैं.

जीवाश्म के अध्ययन से पता चला है कि पुराने समय में जानवरों की कुछ ऐसी जातियां भी धरती पर विचरण करती थीं, जो धरती की बदलती हुई परिस्थितियों के साथ अपने को न ढाल पाईं और धीरे-धीरे समाप हो गई. डायनोसोर ऐसे ही विशाल रेंगने वाले प्राणी थे, जिनका आज अस्तित्व नहीं है. यह जानकारी उनके अवशेषों से ही प्राप्त हुई है.

जीवाश्म के अध्ययन से यह भी पता चलता है कि धरती की जलवायु में अनेकों परिवर्तन कैसे हुए हैं. फासिलों के अध्ययन से धरती के गर्भ में कोयले और तेलों के भण्डारों की उपस्थिति के विषय में भी बहुत से संकेत मिलते हैं.


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