डायनोसॉर (Dinosours) क्या थे?
रोड़ो वर्ष पहले हमारी धरती पर डायनोसॉर नाम के भारी भरकम शरीर वाले विशालकाय जत् विचरण करते राहते थे. डायनोसॉर शब्द ग्रीक का हें "विशालकाय छिपकली". इन जंतुओ का जन्म लगभग 22.5 करोड़ वर्ष पहले हआ था. ये 16 करोड़ वर्ष तक धरती पर विचरण करते रहे. लगभग 6.5 करोड़ वर्ष पहले इन विशालकाय जंतुओं का अंत हो गया. शायद ये अपने को धरती की बदलती हुई परिस्थितियों के अनुसार ढाल न पाये और धीरे-धीरे समाप्त हो गये. इनके अंत होने के कारण अभी तक पूरी तरह पता नहीं लग पाया है. विशेषज्ञों के इस विषय में अलग-अलग विचार हैं.
शुरू-शुरू में इनका आकार छोटा होता था और ये अपनी पिछली टांगों के सहारे चलते थे. परिवर्तन प्रकृति का अनिवार्य नियम है, अतः धीरे-धीरे इनका आकार बढ़ता गया और इतना बढ़ गया कि छोटी टांगों के सहारे चलना इनके लिए मुश्किल हो गया. इसलिए ये अपना अधिकतर समय नदियों और कीचड़ में ही बिताने लगे. इन विशालकाय जंतुओं को दो वर्गों में बांटा जाता है : सॉरिस्किया (Saurischia) और आर्मीथिस्किया (Ornithischia). सॉरिस्किया वर्ग का पिछला हिस्सा छिपकली की तरह था और आधथिस्किया वर्ग का पिछला हिस्सा चिड़ियों जैसा.
सॉरिस्किया वर्ग को दो हिस्सों में बांटा जाता है : सॉरोपोड (Sauropod) और थेरोपोड (Theropod). सॉरोपोड वे डायनोसॉर थे, जो पेड़-पौधे खाकर जिन्दा रहते थे और थेरोपोड मांसाहारी डायनोसॉर थे.
सॉरोपोड बहुत ही विशाल आकार के जीव थे. इनमें ब्रोंटोसॉरस (Brontosaurus) नाम के जीवों की लम्बाई 24 मीटर (80 फुट) तक थी. इनका भार 32 मेट्रिक टन तक था. इनकी गर्दन और पूंछ काफी लंबी थी ये चार टांगों पर चलते थे. इनसे विशाल जन्तु थे ब्रेशियोसारे, जिनका वज़न 77 मेट्रिक टन होता था.
मांसाहारी थेरोपोड अपनी पिछली टांगों पर चलते थे. वे अपनी छोटी-छोटी अगली टांगों को शिकार पकड़ने और उसे चीर कर खाने में काम लेते थे. ये बड़े ही डरावने जीव थे और सॉरोपोड प्राणियों तक को मारकर खा जाते थे. इन मांसाहारियों में डायनोसॉर बहुत ही भयानक थे. इनकी लंबाई 6 मीटर तक थी और इनके दांत 15 सेमी. (6 इंच) लंबे होते थे, जिनसे ये विशालकाय जंतओं को आसानी से खा जाते थे.
आथिस्किया डायनोसॉर का पिछला हिस्सा चिड़ियों से मिलता था. इनकी गर्दन बहुत सख्त थी. कहा जाता है कि इनके दो मस्तिष्क होते थे और ये पानी में तैर भी सकते थे.
ये सभी डायनोसॉर लगभग 7 करोड़ वर्ष पहले धरती से समाप्त हो गए. धरती की बदलती परिस्थितियों के अनुकूल ये जंतु अपने को ढाल न पाए और धीरे-धीरे समाप्त हो गए. इनके विषय में केवल फॉसिल (Fossils) अध्ययनों से ही जानकारी प्राप्त हुई है.